69. नारद
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1."माला में प्रतियमान सर्प के समान" सत्यस्वरूप भगवानसे उदय होने पर भी *यह त्रिभुवन सत्य नहीं है।* 2.*झूठा सोना बाजार में चल जाने पर भी सत्य नहीं हो जाता" 3. वेदों का तात्पर्य भी जगत की सत्यता में नहीं हैं। 4. भगवान का जो,परम सत्य, परमआनंद स्वरूप अद्वैत सुंदर पद है, हम उसी की वंदना करते हैं।
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